RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

These comprehensive RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले will give a brief overview of all the concepts.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Social Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 10. Students can also read RBSE Class 10 Social Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 10 Social Science Notes to understand and remember the concepts easily. The class 10 economics chapter 2 intext questions are curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

→ लिंग पर आधारित असमानता - सामाजिक असमानता का लैंगिक असमानता सम्बन्धी रूप हर जगह नजर आता है। लैंगिक असमानता को स्वाभाविक ( प्राकृतिक) और अपरिवर्तनीय मान लिया जाता है। लेकिन लैंगिक असमानता का आधार स्त्री-पुरुष की जैविक बनावट नहीं वरन् इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं।

  • संसार में लैंगिक आधार पर श्रम विभाजन बहुत आम है तथा यह सदियों से चलता आ रहा है कि स्त्रियों का कार्यक्षेत्र घर की चार-दीवारी के अन्दर है और पुरुष का बाहर। जबकि सच्चाई यह है कि अधिकतर महिलाएं अपने घरेलू | काम के अतिरिक्त अपनी आय के लिए कुछ न कुछ काम करती हैं, लेकिन उनके काम को मूल्यवान नहीं माना जाता।
  • मनुष्य जाति की आबादी में औरतों का हिस्सा आधा है, पर सार्वजनिक जीवन में, विशेषकर राजनीति में उनकी भूमिका नगण्य है। यह बात अधिकतर समाजों पर लागू होती है।
  • नारीवादी आंदोलनों के जीवन के हर क्षेत्र में स्त्रियों की अधिक से अधिक भागीदारी की वकालत से सार्वजनिक जीवन में औरतों की भूमिका बढ़ी है तथा कुछ देशों में आज सार्वजनिक जीवन में भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है।
  • भारत में स्वतंत्रता के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी वे पुरुषों से काफी | पीछे हैं। इसके प्रमुख कारण हैं-पित-प्रधान समाज, महिलाओं में साक्षरता की कमी, महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी देना, लड़के की चाह आदि।
  • महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए नारीवादी समूह | ने प्रतिनिधि संस्थाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने पर बल दिया। भारत में राज्यों की विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 फीसदी से भी कम है। इस समस्या को सुलझाने के लिए एक-तिहाई सीटों पर महिलाओं के आरक्षण की माँग की। स्थानीय शासन संस्थाओं में तो यह आरक्षण प्रदान कर दिया गया है लेकिन राज्य विधायिकाओं और संसद में अभी तक संभव नहीं हो पाया है। यद्यपि संसद में इस आशय का प्रस्ताव पेश कर | दिया गया था किन्तु वह पास नहीं हो सका है।

RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

→ धर्म पर आधारित असमानता - भारत समेत अनेक देशों में अलग-अलग धर्मों के मानने वाले लोग रहते हैं। धार्मिक विभाजन प्रायः राजनीति के मैदान में अभिव्यक्त होता है। लेकिन यदि शासन सभी धर्मों के साथ समान बरताव करता है तो उसके ऐसे कामों में कोई बुराई नहीं है।
साम्प्रदायिकता-साम्प्रदायिकता की समस्या तब उठ खड़ी होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है या जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्षपोषण का रूप लेने | लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलम्बियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। राजनीति को धर्म से इस तरह जोड़ना ही साम्प्रदायिकता है।

→ साम्प्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है -

  • एक धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ मानना,
  • बहुसंख्यकवाद,
  • साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबन्दी।

→ धर्मनिरपेक्ष शासन - भारतीय संविधान निर्माताओं ने भारत के लिए धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना। इसमें शामिल हैं

  • राज्य द्वारा किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं करना;
  • सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता;
  • धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं;
  • धार्मिक समुदायों में समानता हेतु धार्मिक मामलों में शासन का दखल का अधिकार।

→ जातिगत असमानताएँ - जाति पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है। इसमें जन्म आधारित ऊँच-नीच की व्यवस्था तथा व्यवसाय, विवाह और खान-पान की पृथकता पाई जाती है।

→ वर्ण-व्यवस्था - वर्ण व्यवस्था अन्य जाति-समूहों से भेदभाव और उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा पर आधारित है। 

→ जाति प्रथा में परिवर्तन - भारत में आर्थिक विकास, शहरीकरण, साक्षरता, शिक्षा के विकास, पेशा चुनने की आजादी और जमींदारी व्यवस्था के कमजोर पड़ने आदि कारणों से जाति-व्यवस्था की पुरातन मान्यता में बदलाव आ रहा है। लेकिन जाति प्रथा के कुछ पुराने पहलू अभी भी विद्यमान हैं, ये हैं-जातिगत विवाह तथा निम्न जातियों को दबाकर रखने की स्थिति।

RBSE Class 10 Social Science Notes Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

→ राजनीति में जाति - राजनीति में जाति अनेक रूप ले सकती है

  • चुनाव में उम्मीदवारी का निर्धारण जातीय गणित के आधार पर।
  • राजनीतिक दलों द्वारा वोट हेतु जातिगत भावनाओं को उकसाना।
  • निम्न जातियों के लोगों में राजनीतिक चेतना का पैदा होना।
  • वोट बैंक की राजनीति करना।
  • क्षेत्र में बहुसंख्यक जाति के उम्मीदवारों का ही होना।
  • जातियों और समुदायों की अलग-अलग राजनीतिक पसंद के कारण सत्ताधारी दल के प्रत्याशियों या वर्तमान विधायकों का हारना संभव।।
  • जाति के जुड़ाव के साथ ही साथ, लोगों का दलों के साथ भी जुड़ाव, जाति में गरीब तथा अमीर लोगों के अलग-अलग रुझान का होना तथा सरकार के कामकाज के प्रति लोगों का दृष्टिकोण भी राजनीति पर प्रभाव डालते हैं। जाति के अन्दर राजनीति जातिगत राजनीति ने दलित और पिछड़ी जातियों के लोगों के लिए सत्ता तक पहुँचने में प्रभावी भूमिका निभायी है।
Prasanna
Last Updated on May 7, 2022, 4:36 p.m.
Published May 6, 2022