RBSE Class 10 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

Rajasthan Board RBSE Class 10 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 10 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. 
नारीवादी वह पुरुष या स्त्री है जो विश्वास करता है-
(अ) पुरुष और स्त्री के संयुक्त अधिकारों में 
(ब) पुरुष और स्त्री के अलग-अलग अधिकारों में 
(स) पुरुष और स्त्री के समान अधिकारों में 
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) पुरुष और स्त्री के समान अधिकारों में 

प्रश्न 2. 
निम्न में से किन देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर सबसे ऊँचा है-
(अ) यूरोप के देशों में
(ब) स्कैंडिनेवियाई देशों में 
(स) एशिया के देशों में
(द) अफ्रीकी देशों में 
उत्तर:
(ब) स्कैंडिनेवियाई देशों में 

प्रश्न 3. 
निम्न में से किस देश में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सबसे कम है-
(अ) भारत 
(ब) स्वीडन 
(स) नार्वे
(द) अमेरिका 
उत्तर:
(अ) भारत 

प्रश्न 4. 
राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व की समस्या को कैसे हल किया जा सकता है? 
(अ) शिक्षा में सुविधाएँ देकर
(ब) आरक्षण प्रदान करके 
(स) स्त्रियों में जागरूकता पैदा करके
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं 
उत्तर:
(ब) आरक्षण प्रदान करके 

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प्रश्न 5. 
'धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता' यह कथन है-
(अ) महात्मा गांधी का
(ब) सुभाष चन्द्र बोस का 
(स) जवाहरलाल नेहरू का
(द) कार्ल मार्क्स का 
उत्तर:
(अ) महात्मा गांधी का

प्रश्न 6. 
भारतीय समाज है-
(अ) मातृ प्रधान
(ब) बाल प्रधान 
(स) पितृ प्रधान 
(द) मातृ-पितृ प्रधान 
उत्तर:
(स) पितृ प्रधान 

प्रश्न 7. 
वर्ष 2019 में लोकसभा में महिला सांसदों का कितना प्रतिशत है?
(अ) 5 प्रतिशत 
(ब) 8.4 प्रतिशत 
(स) 10.6 प्रतिशत 
(द) 14.36 प्रतिशत 
उत्तर:
(द) 14.36 प्रतिशत 

प्रश्न 8. 
स्थानीय सरकारों में महिलाओं के लिए कितने पद आरक्षित किये गये हैं?
(अ) एक-चौथाई 
(ब) एक-तिहाई 
(स) आधे 
(द) दो-तिहाई 
उत्तर:
(ब) एक-तिहाई 

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प्रश्न 9. 
धर्म को राष्ट्र का आधार मानने पर कौनसी समस्या शुरू होती है? 
(अ) सांप्रदायिकता की
(ब) जातिवाद की 
(स) लैंगिक असमानता की
(द) क्षेत्रवाद की 
उत्तर:
(अ) सांप्रदायिकता की

प्रश्न 10. 
निम्न में से कौनसा समाज सुधारक जातिगत भेदभावों से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात करता था? 
(अ) पेरियार रामास्वामी नायकर
(ब) डॉ. अम्बेडकर 
(स) महात्मा गांधी
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

1. भारत में ......... के बाद से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है। 
2. सांप्रदायिक सोच अक्सर अपने धार्मिक समुदाय का .......... स्थापित करने की फिराक में रहती है। 
3. विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान में भयावह ......... दंगे हुए थे। 
4. ......... पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है। 
5. सिर्फ .......... पहचान पर आधारित राजनीति लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं होती।
उत्तरमाला:
1. आजादी 
2. राजनीतिक प्रभुत्व 
3. सांप्रदायिक 
4. जाति 
5. जातिगत। 

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अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
लैंगिक असमानता का आधार क्या है? 
उत्तर:
लैंगिक असमानता का आधार है-प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ।

प्रश्न 2. 
'औरतों की मुख्य जिम्मेवारी गृहस्थी चलाने और बच्चों के लालन-पालन करने की है।' यह बात किस विभाजन से झलकती है?
उत्तर:
यह बात श्रम के लैंगिक विभाजन से झलकती है।

प्रश्न 3. 
औरत और मर्द के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
नारीवादी। 

प्रश्न 4. 
सामाजिक असमानता का कौन-सा रूप प्रत्येक स्थान पर दिखाई देता है? 
उत्तर:
लैंगिक असमानता का। 

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प्रश्न 5. 
भारत में सन् 2011 में राष्ट्रीय लिंगानुपात क्या था? 
उत्तर:
भारत में सन् 2011 में राष्ट्रीय लिंगानुपात 943 था। 

प्रश्न 6. 
सन् 2011 में भारत के किन राज्यों में बाल लिंगानुपात 875 से भी कम था? 
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा, और जम्मू एवं कश्मीर में। 

प्रश्न 7. 
भारत में सन् 2011 में हिन्दू धर्मावलम्बियों की जनसंख्या कितने प्रतिशत थी? 
उत्तर:
79.8 प्रतिशत। 

प्रश्न 8. 
श्रम के लैंगिक विभाजन से क्या आशय है?
उत्तर:
काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं और बाहर के काम पुरुष।

प्रश्न 9. 
नारीवादी आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वे आंदोलन जो स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार दिलाने के लिए चलाए गए थे, नारीवादी आंदोलन कहे जाते हैं।

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प्रश्न 10. 
सर्वप्रथम नारीवादी आंदोलन की शुरुआत किस देश से हुई थी? 
उत्तर:
अमेरिका से। 

प्रश्न 11. 
नारीवाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
नारीवाद एक विचार है जो यह कहता है कि स्त्रियों को भी समाज में वही स्थिति प्राप्त हो जो पुरुषों को प्राप्त है।

प्रश्न 12. 
भारत में स्त्रियाँ पुरुषों से इतने पीछे क्यों हैं? 
उत्तर:
पितृ-सत्तात्मक समाज तथा शिक्षा व आर्थिक उन्नति के अवसरों की कमी के कारण। 

प्रश्न 13. 
पितृसत्तात्मक समाज कौन-सा होता है? 
उत्तर:
पितृसत्तात्मक समाज वह होता है जो पुरुष प्रधान होता है तथा परिवार का शासन पिता के हाथों में होता है। 

प्रश्न 14. 
नगरीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब ग्रामीण लोग गाँवों से किन्हीं कारणों से शहरों की तरफ जाधे लगते हैं तो इस प्रक्रिया को नगरीकरण कहा जाता है।

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प्रश्न 15. 
लिंग अनुपात का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में 1000 लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या को लिंगानुपात कहते हैं। जैसे वर्ष 2011 में भारत में लिंगानुपात 943 था।

प्रश्न 16. 
पारिवारिक कानूनों का क्या अर्थ है?
उत्तर:
पारिवारिक कानून वे कानून हैं जो पारिवारिक मसलों-विवाह, गोद, तलाक, उत्तराधिकार आदि को हल करने के लिए बने हों।

प्रश्न 17. 
साम्प्रदायिक राजनीति का क्या अर्थ है? 
उत्तर:
जब राजनीति में और धर्मों की तुलना में एक धर्म की श्रेष्ठता दर्शायी जाए तो इसे साम्प्रदायिक राजनीति कहते हैं।

प्रश्न 18. 
विश्व के किन देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है? 
उत्तर:
स्वीडन, नार्वे और फिनलैंड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में। 

प्रश्न 19. 
जातिवाद से क्या आशय है?
उत्तर:
जब राजनेता चुनावी लाभ के लिए जातिगत चेतना उकेरकर उसका लाभ उठाने का प्रयास करते हैं, तो इस प्रक्रिया को जातिवाद कहा जाता है।

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प्रश्न 20. 
जातिवाद के हमारे समाज पर पड़ने वाले दो प्रभाव बताएँ। 
उत्तर:

  • जातिवाद राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है। 
  • जातिवाद धर्मनिरपेक्ष समाज के विकास में बाधा डालता है। 

प्रश्न 21. 
जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज की व्यवस्था बनाने वाले दो समाज सुधारकों के नाम बताइए। 
उत्तर:

  • ज्योतिबा फुले। 
  • ई.वी. रामास्वामी पेरियार। 

प्रश्न 22. 
श्रम के लैंगिक विभाजन का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
इससे महिलाएँ तो घर की चारदीवारी में सिमट कर रह गयीं और बाहर का सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में आ गया।

प्रश्न 23. 
भारत में जाति ने किन तरीकों से राजनीति को प्रभावित किया है? 
उत्तर:

  • राजनैतिक दलों द्वारा जाति के आधार पर उम्मीदवार चुनना। 
  • सरकार में विभिन्न जातियों के लोगों को प्रतिनिधित्व देना। 

प्रश्न 24. 
'भारत में चुनाव में जाति के अतिरिक्त अन्य कारकों का भी प्रभाव पड़ता है।' कोई दो कारक बताइये। 
उत्तर:

  • मतदाता जातियों से कहीं अधिक राजनीतिक दलों से अधिक जुड़ाव रखते हैं। 
  • एक ही जाति के अमीर और गरीब लोग प्रायः अलग-अलग पार्टियों को वोट देते हैं। 

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प्रश्न 25. 
पेशागत स्थानापन्न किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब एक व्यक्ति अपने पेशे को बदलता है अर्थात् एक पेशे को छोड़कर दूसरे पेशे को अपना लेता है तो इसे पेशागत स्थानापन्न कहते हैं।

प्रश्न 26. 
'सर्वधर्म समभाव' शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानवता के प्रति मैत्रीभाव रखते हुए वैश्विक कल्याण हेतु स्वधर्म पालन करना तथा अन्य धर्मों का आदरसम्मान करना ही सर्वधर्म समभाव है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्न (Type-I)

प्रश्न 1. 
लैंगिक असमानता से क्या आशय है? सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं। उदाहरण के लिए औरतों की मुख्य जिम्मेवारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की है। यह चीज अधिकतर परिवारों के श्रम के लैंगिक विभाजन से झलकती है।

प्रश्न 2. 
क्यों महिलाओं द्वारा किये जाने वाले कार्य दिखते नहीं अथवा उन्हें पहचान प्राप्त नहीं होती?
उत्तर:
महिलाएँ घरेलू कार्य करती हैं जिसके एवज में उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है, जबकि पुरुष बाहर जाकर उन्हीं कार्यों को करके पैसा कमाकर लाता है। पैसा कमाने से पुरुषों को पहचान प्राप्त होती है और महिलाओं को घरेल कार्यों के कोई पैसा न मिलने के कारण उन्हें पहचान प्राप्त नहीं होती है।

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प्रश्न 3. 
लैंगिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एवं राजनीतिक गोलबंदी से सार्वजनिक जीवन में औरतों पर क्या प्रभाव पड़ा है? 
उत्तर:
लैंगिक विभाजन की राजनीतिक गोलबंदी ने सार्वजनिक जीवन में औरतों की भूमिका बढ़ाने में मदद की है। इसो के परिणामस्वरूप आज हम वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, कॉलेज और विश्वविद्यालयी शिक्षक जैसे पेशों में बहुत-सी औरतों को पाते हैं।

प्रश्न 4. 
कुछ खास किस्म के सामाजिक विभाजनों को राजनीतिक रूप देने की क्या जरूरत है?
उत्तर:
कुछ खास किस्म के सामाजिक विभाजनों को राजनीतिक रूप देने की आवश्यकता है; क्योंकि इससे वंचित समूहों को लाभ मिलता है, उन्हें बराबरी का दर्जा मिलता है। उदाहरण के लिए, यदि महिलाओं से भेदभाव भरे व्यवहार का मुद्दा राजनीतिक तौर पर न उठता तो सार्वजनिक जीवन में भागीदारी नहीं मिलती।

प्रश्न 5. 
धर्म और राजनीति के सम्बन्ध में गाँधीजी के क्या विचार थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी के अनुसार धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म से उनका अभिप्राय नैतिक मूल्यों से था जो सभी धर्मों से जुड़े हैं। गाँधीजी का मानना था कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।

प्रश्न 6. 
साम्प्रदायिकता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता समाज की वह स्थिति है जिसमें विभिन्न धार्मिक समूह अन्य समूहों पर अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास करते हैं। इस मानसिकता के अनुसार या तो एक धार्मिक समुदाय के लोगों को दूसरे समुदाय के वर्चस्व में रहना होगा अथवा फिर उनके लिए अलग राष्ट्र बनाना होगा।

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प्रश्न 7. 
धर्मनिरपेक्ष राज्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्ष राज्य वह राज्य है जिसका अपना कोई राजकीय धर्म नहीं होता तथा जिसमें सभी नागरिकों को कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता होती है। राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं करता है।

प्रश्न 8. 
साम्प्रदायिक राजनीति का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साम्प्रदायिक राजनीति का अर्थ है-राजनीति में धर्म का इस तरह प्रयोग कि एक धर्म दूसरे धर्म से श्रेष्ठ है। इनके अनेक रूप हैं। यथा-

  • जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है। 
  • जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगे।

प्रश्न 9. 
जातिगत असमानता के स्वरूप को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जातिगत असमानता में एक जाति समूह के लोग एक या मिलते-जुलते पेशों के होते हैं। पेशों के वंशानुगत विभाजन को रीति-रिवाजों की मान्यता प्राप्त है। दूसरे, जातिगत असमानता में एक जाति-समूह को एक अलग सामाजिक समुदाय के रूप में देखा जाता है। अन्य जाति समूहों में उनके बच्चों के साथ विवाह और खान-पान के सम्बन्ध नहीं होते हैं। 

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लघूत्तरात्मक प्रश्न (Type-II)

प्रश्न 1. 
सामाजिक समानता में शहरीकरण के योगदान को उजागर कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक समानता में शहरीकरण का योगदान-सामाजिक समानता की स्थापना में शहरीकरण के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। यथा-
(1) शहरीकरण में जाति-व्यवस्था के पुराने स्वरूप और वर्ण व्यवस्था पर टिकी मानसिकता में बदलाव आ रहा है। शहरी इलाकों में तो अब ज्यादातर इस बात का कोई हिसाब नहीं रखा जाता कि ट्रेन या बस में आप के साथ कौन बैठा है या रेस्तराँ में आपकी मेज पर बैठकर खाना खा रहे आदमी की जाति क्या है?

संविधान में जो जातिगत भेदभाव का निषेध तथा अस्पृश्यता का निषेध किया गया है, शहरों में व्यावहारिक रूप में उसे लागू किया जा रहा है। यहाँ खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा, व्यवसाय सम्बन्धी जातिगत भेदभाव की वर्जनाएँ समाप्त हो रही हैं।

(2) शहरीकरण ने जातिगत निवास सम्बन्धी भेदभाव को भी काफी हद तक समाप्त कर दिया है।
(3) शहरों में सबको शिक्षा प्राप्त करने की समानता है। स्कूलों व कॉलेजों में बिना किसी भेदभाव के सभी जाति व धर्म के लोग एक साथ बैठकर शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यद्यपि उच्च शिक्षा में अभी भी पिछड़े वर्ग के लोग पिछड़े हुए हैं, लेकिन इसका प्रमुख कारण आर्थिक असमानता है, सामाजिक असमानता नहीं।।

प्रश्न 2. 
भारत की सामाजिक और धार्मिक विविधता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भारत की सामाजिक विविधता- भारत में अनेक जाति समूहों के लोग रहते हैं। जनगणना में यहाँ सिर्फ दो विशिष्ट समूहों अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों की गणना अलग से दर्ज की जाती है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की संख्या क्रमशः 16.6% तथा 8.6% है।

भारत की धार्मिक विविधता-2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनेक धर्मों हिन्दू 79.8%, मुसलमान 14.2%, ईसाई 2.3%, सिख 1.7%, बौद्ध 0.7%, जैन 0.4% तथा अन्य धर्मावलम्बी 0.7% तथा कोई धर्म नहीं 0.2% लोग रहते हैं।

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प्रश्न 3. 
स्पष्ट कीजिये कि आज भी जाति आर्थिक हैसियत के निर्धारण में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
उत्तर:
जाति आर्थिक हैसियत के निर्धारण में आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यथा-

  • औसत आर्थिक हैसियत अभी भी जाति व्यवस्था (वर्ण व्यवस्था) के साथ गहरा सम्बन्ध दर्शाती है; क्योंकि ऊँची जाति के लोगों की आर्थिक स्थिति सबसे अच्छी है, दलित और आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सबसे खराब है, जबकि पिछड़ी जातियाँ बीच की स्थिति में हैं।
  • गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वालों में ज्यादा बड़ी संख्या सबसे निचली जातियों के लोगों की है। ऊँची जातियों में गरीबी का प्रतिशत सबसे कम है और पिछड़ी जातियों की स्थिति बीच की है।
  • आज सभी जातियों में अमीर लोग हैं, लेकिन यहाँ भी ऊँची जाति वालों का अनुपात ज्यादा है और निचली जातियों का कम।

प्रश्न 4. 
जाति किस प्रकार राजनीतिग्रस्त हो जाती है? स्पष्ट करें।
उत्तर:
जाति अनेक रूपों में राजनीतिग्रस्त होती है- 

  • हर जाति स्वयं को बड़ा बनाना चाहती है। इसलिए अब वह अपने समूह की सभी जातियों को अपने साथ लाने की कोशिश करती है।
  • चूंकि एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनैतिक ताकत पाने के लिए दूसरी जातियों या समुदायों को साथ लेने की कोशिश करती है और इस तरह उनके बीच संवाद और मोल-तोल होता है।
  • राजनीति में नए किस्म की जातिगत गोलबंदी भी हुई है, जैसे-'अगड़ा' और 'पिछड़ा'। . इस प्रकार जाति राजनीति में कई तरह की भूमिकाएं निभाती है। 

प्रश्न 5. 
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति भारत में दो विशिष्ट समूह हैं। इन दोनों बड़े समूहों में ऐसी सैंकड़ों जातियाँ और आदिवासी समूह शामिल हैं जिनके नाम सरकारी अनुसूची में दर्ज हैं। इसी के चलते इनके नाम के साथ 'अनुसूचित' शब्द लगाया गया है।

अनुसूचित जाति-अनसूचित जातियों में, जिन्हें आम तौर पर दलित कहा जाता है, सामान्यतः वे हिंदू जातियाँ आती हैं जिन्हें हिंदू सामाजिक व्यवस्था में अछूत माना जाता था। इन जातियों के साथ भेदभाव किया जाता था और इन्हें तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था।

अनुसूचित जनजाति-अनुसूचित जनजातियों में जिन्हें आमतौर पर आदिवासी कहा जाता है, वे समुदाय शामिल हैं जो अमूमन पहाड़ी और जंगली इलाकों में रहते हैं और जिनका बाकी समाज में ज्यादा मेल-जोल नहीं था।

2011 में, देश की आबदी में अनुसूचित जातियों का हिस्सा 16.6 फीसदी और अनुसूचित जनजातियों का हिस्सा 8.6 फीसदी था। 

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. 
भारत में महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने हेतु क्या प्रयास किये गये? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने हेतु किये गये प्रयास-भारत में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व बहुत कम है। उन्हें अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व देने के लिए निम्न प्रयास किये गये हैं-
(1) भारत में पंचायती राज के अन्तर्गत कुछ सांविधानिक व्यवस्था की गई है । स्थानीय सरकारों अर्थात् पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिये गये हैं। इसके कारण वर्तमान में भारत के ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 10 लाख से भी ज्यादा हो गई है।

(2) महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की भी एक-तिहाई सीटें . महिलाओं के लिए आरक्षित करने की माँग की है।

(3) संसद में उक्त आशय का एक विधेयक भी पेश किया गया था जो दस वर्षों से भी अधिक अवधि से लम्बित पड़ा है। सभी राजनैतिक दलों के एकमत नहीं होने के चलते यह पास नहीं हो सका है। इसे शीघ्र पास करने के लिए विभिन्न महिला संगठनों द्वारा दबाव बनाया जा रहा है।

प्रश्न 2. 
नारीवादी आन्दोलन किसे कहा जाता है? भारत में औरतों के साथ असमान व्यवहार की समस्या के निपटारे के लिए नारीवादी समूह किस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं?
उत्तर:
नारीवादी आंदोलन-जब महिलाओं ने महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने और उनके लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए आंदोलन किए तथा व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी औरतों के लिए बराबरी की मांग उठाई तो इन आंदोलनों को ही नारीवादी आंदोलन कहा गया।

नारीवादी समूहों का निष्कर्ष भारत में पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण औरतों की भलाई या उनके साथ समान व्यवहार वाले मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। इसी के चलते नारीवादी समूह और महिला आंदोलन इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि जब तक औरतों का सत्ता पर नियंत्रण नहीं होगा तब तक इस समस्या का निपटारा नहीं हो सकता। इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ानी आवश्यक है। इसी के चलते महिला संगठनों और कार्यकर्ताओं की माँग है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएँ। 

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प्रश्न 3. 
भारत में धर्म निरपेक्ष राज्य से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिये।
अथवा 
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्ष शासन हेतु क्या प्रावधान किये गये हैं? 
उत्तर:
भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्ष शासन हमारे संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना और इसी आधार पर संविधान में निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-

  • कोई धर्म राजधर्म नहीं भारतीय राज्य ने किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में अंगीकार नहीं किया है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंग्लैंड में ईसाई धर्म का जो दर्जा रहा है उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
  • कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता संविधान सभी नागरिकों और समुदायों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है।
  • धार्मिक भेदभाव का निषेध-संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।
  • धार्मिक मामलों में शासन के हस्तक्षेप की इजाजत भारत का संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। जैसे यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता।
  • इससे स्पष्ट होता है कि धर्मनिरपेक्षता, भारतीय संविधान की बुनियाद है। 

प्रश्न 4. 
जातिवाद से आप क्या समझते हैं? राजनीति में जाति के विभिन्न रूपों को स्पष्ट कीजिये।
अथवा 
भारतीय राजनीति में 'जाति' की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जातिवाद से आशय जातिवाद इस मान्यता पर आधारित है कि जाति ही सामाजिक समुदाय के गठन का एकमात्र आधार है। एक जाति के लोगों के हित एक जैसे होते हैं तथा दूसरी जाति के लोगों से उनके हितों का कोई मेल नहीं होता।

राजनीति में जाति के विभिन्न रूप
अथवा
भारतीय राजनीति में जाति की भूमिका 
भारतीय राजनीति में जाति के अनेक रूप दिखाई देते हैं। यथा-

  • उम्मीदवारों का चुनाव जातियों की संख्या के हिसाब से-राजनैतिक दल चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करते समय चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखते हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाएँ।
  • सरकार के गठन में जतियों को प्रतिनिधित्व देना सरकार का गठन करते समय भी राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों के लोगों को उचित स्थान मिले।
  • जातिगत भावनाओं को भड़काकर वोट पाने की कोशिश राजनीतिक दल और उम्मीदवार समर्थन हासिल करने के लिए जातिगत भावनाओं को उकसाते हैं।
  • जातिगत गोलबंदी और निम्न जातियों में राजनैतिक चेतना का उदय सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार और एक व्यक्ति एक वोट की व्यवस्था से उन जातियों के लोगों में नई चेतना पैदा हुई है जिन्हें अभी तक छोटा और नीच माना जाता था।

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प्रश्न 5. 
भारत में राजनीति में जाति' और 'जाति के अन्दर राजनीति' है। इस कथन से क्या आप सहमत हैं? दो-दो तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत में 'राजनीति में जाति' है अर्थात् भारतीय राजनीति में जातिवाद का अत्यधिक प्रभाव है। यथा-

  • उम्मीदवारों का चुनाव जातियों की संख्या से हिसाब से—भारत में जब राजनीतिक दल चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम तय करते हैं तो चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं की जातियों का हिसाब ध्यान में रखते हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए उस जाति के वोट पड़ जाएँ।
  • सरकार के गठन में जातियों को प्रतिनिधित्व देना-जब सरकार का गठन किया जाता है तो राजनीतिक दल इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसमें विभिन्न जातियों के लोगों को उचित स्थान मिले।

भारत में 'जाति के अन्दर राजनीति' है-भारत में जाति के अन्दर भी राजनीति पाई जाती है। यथा-

  • चूँकि एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनैतिक ताकत पाने के लिए दूसरी जातियों के साथ समझौता करती है।
  • एक ही जाति के अमीर और गरीब लोगों के बीच में भी मतभेद रहता है तथा वे अलग-अलग दलों का समर्थन करते हैं।
  • एक जाति के लोग अलग-अलग व्यक्तियों के नेतृत्व में अलग-अलग दलों में विभाजित हो जाते हैं। 

प्रश्न 6. 
श्रम के लैंगिक विभाजन से क्या आशय है? भारत में श्रम के लैंगिक विभाजन को समझाइए।
उत्तर:
श्रम के लैंगिक विभाजन से आशय-श्रम के लैंगिक विभाजन से आशय श्रम के बँटवारे का वह तरीका है जिसमें घर के अंदर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देखरेख में घरेलू नौकरों/नौकरानियों से कराती हैं, जबकि घर के बाहर का सारा कार्य पुरुष करते हैं।

भारत में श्रम का लैंगिक विभाजन-भारत में श्रम के लैंगिक विभाजन को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है-

  • गृहस्थ स्त्रियाँ प्रायः सबसे पहले उठकर अपना कार्य प्रारम्भ करती हैं और देर रात तक समाप्त करती हैं। लेकिन उनका कार्य अनुत्पादक माना जाता है। वह कार्य राष्ट्रीय आय का भाग नहीं होता।
  • कृषि के क्षेत्र में जहाँ 80 प्रतिशत स्त्रियाँ काम कर रही हैं, स्त्री को पुरुष की अपेक्षा कम मजदूरी मिलती है।
  • घरेलू उद्योगों में स्त्रियों को न तो रोजगार की सुरक्षा है और न निश्चित दर पर मजदूरी मिलती है। श्रम के कल्याण की कोई व्यवस्था नहीं है तथा वहाँ उनके यौन शोषण का भी भय बना रहता है।
  • संगठित उद्योगों में स्त्रियाँ निम्न स्तर पर ही कार्य कर रही हैं। 
  • वृत्ति समूहों की दृष्टि से सर्वाधिक स्त्रियाँ शिक्षण, चिकित्सा और नर्सिंग के क्षेत्र में हैं। 
  • भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। 

RBSE Class 10 Social Science Important Questions Civics Chapter 4 जाति, धर्म और लैंगिक मसले

प्रश्न 7. 
लोकतांत्रिक राजनीति में साम्प्रदायिकता के प्रभाव को उजागर कीजिए।
अथवा 
साम्प्रदायिकता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। भारतीय राजनीति में इसकी अभिव्यक्ति के विभिन्न रूप क्या हैं?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता की अवधारणा साम्प्रदायिकता की समस्या तब खड़ी होती है जब धर्म को राष्ट्र का आधार मान लिया जाता है या जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्ष-पोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलम्बियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं । राजनीति को धर्म से इस तरह से जोड़ना ही साम्प्रदायिकता है।

लोकतांत्रिक राजनीति में साम्प्रदायिकता के प्रभाव (अथवा) भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति के रूप-भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति के रूप या उसके प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • धार्मिक पूर्वाग्रह-साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति दैनंदिन जीवन में ही दिखती है। इसमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी-बनाई धारणाएँ तथा एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं।
  • बहुसंख्यकवाद-बहुसंख्यकवाद धार्मिक समुदाय की राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है।
  • साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबंदी-साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबन्दी साम्प्रदायिकता का एक अन्य रूप है । इसके अन्तर्गत चुनावी राजनीति में एक धर्म के मतदाताओं की भावनाओं या उनके हितों की बात उठाने के तरीके अपनाये जाते हैं।
  • साम्प्रदायिक हिंसा कई बार साम्प्रदायिकता सबसे घृणित रूप लेकर सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है।

प्रश्न 8. 
नारीवादी आंदोलन की व्याख्या कीजिए और भारत में महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नारीवादी आंदोलन महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने और उनके लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने की माँग करने वाले महिला आंदोलनों ने जब औरतों के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की माँग उठाई तो इन आंदोलनों को नारीवादी आंदोलन कहा गया। 

भारत में महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। जैसे-

  • लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या कभी कुल सदस्यों का दस फीसदी तक भी नहीं पहुँची है। 
  • राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 5 फीसदी से भी कम है।
  • भारत महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में अफ्रीका और लातिन अमरीका के कई विकासशील देशों से भी पीछे है।
  • मंत्रिमण्डलों में पुरुषों का ही वर्चस्व बना हुआ है। भारत में विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि इन संस्थाओं में महिलाओं के लिए कानूनी रूप से एक निश्चित संख्या, जैसे-एक-तिहाई, तय कर दी जाए।

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प्रश्न 9. 
भारत में लैंगिक विषमता को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर:
भारत में लैंगिक विषमता लैंगिक विषमता का आधार स्त्री-पुरुष की जैविक बनावट नहीं बल्कि इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं। भारत में लैंगिक विषमता को निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-
1. श्रम का लैंगिक विभाजन-भारत में लड़के-लड़कियों के पालन-पोषण के क्रम में यह मान्यता उनके मन में बैठा दी जाती है कि औरतों की मुख्य जिम्मेदारी गृहस्थी चलाने और बच्चों का पालन-पोषण करने की है। श्रम के इस तरह के विभाजन का नतीजा यह हुआ कि औरतें तो घर की चारदीवारी में सिमट कर रह गई हैं और बाहर का सार्वजनिक जीवन पुरुषों के कब्जे में आ गया है। इसी लैंगिक विषमता को दूर करने के लिए महिलाओं के शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढाने तथा व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की मांग उठाई है। इससे श्रम के लैंगिक विभाजन में सुधार हो रहा है।

2. पितृ प्रधान समाज-हमारा समाज अभी भी पितृ-प्रधान है। औरतों के साथ अभी भी कई तरह के भेदभाव होते हैं, उनका दमन होता है। यथा

  • महिलाओं की साक्षरता दर अभी भी पुरुषों से बहुत पीछे है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि माँ-बाप अपने संसाधनों को लड़के-लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने के स्थान पर लड़कों पर ज्यादा खर्च करना पसन्द करते हैं। इस स्थिति के चलते अब भी ऊँची वेतन वाली और ऊँचे पदों पर पहुँचने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है।
  • काम के हर क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है। 
  • हमारे देश में लड़कियों का लिंग-अनुपात कम है जो लैंगिक विषमता के दृष्टिकोण को दर्शाता है। 
  • महिलाओं का उत्पीड़न, शोषण और घरेलू हिंसा भी भारत में लैंगिक विषमता को दर्शाती है। 
  • भारत में विधायिका में महिला प्रतिनिधित्व का बहुत कम होना भी लैंगिक विषमता का सूचक है।
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Last Updated on May 13, 2022, 10:56 a.m.
Published May 13, 2022